6 Best Moral Stories In Hindi For Students

Shivam Tripathi
11 min readSep 29, 2020

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Moral Stories In Hindi For Students छोटे से लेकर बड़े कक्षा में पढ़ने वाले सभी बच्चो के लिए इन कहानियों को पढ़कर वो अपना ज्ञान बढ़ा सकते।

छोटे बच्चो को moral stories बहुत पसंद आती हैं। आपने लोगो को ये कहते भी सुना होगा कि बच्चो का आधार moral stories पर ही निर्भर करता है।

इसका सीधा सा कारण है कि बच्चे जो भी सीखते है वो कहानियों से आसानी से सीखते हैं। साथ ही साथ उन्हें कहानियां पसंद भी आती हैं। इसलिए आज हम इस पोस्ट कुछ ऐसी Moral Stories In Hindi For Students को पढ़ेंगे जिनको पढ़ने में मज़ा भी आये।

Story №1 of Moral Stories In Hindi For Students

आत्मा क्या है?

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

एक बार की बात है। देवो के देव ब्रम्हाजी ने एक बहुत ही भव्य सत्संग का आयोजन किया। उसमे उन्होंने बड़े-बड़े ऋषि, मुनियों, मानव दानव, देवता सभी लोगो को बुलाया। सभी लोग उपस्थित हुए।

सत्संग शुरू हो गया। बहुत सी दुनिया की बातें बताई गयीं। बताया गया की लोगो को कैसा आचरण करना चाहिए और सभी लोग के साथ कैसा व्यवहार रखना चाहिए। अंत में जब सत्संग ख़त्म होने वाला था तो ब्रम्हा जी ने आत्मा के बारे में बताना शुरू किया।

उन्होंने आत्मा के बारे में बताया की वो कभी मर नहीं सकती और न ही वो कभी बूढी हो सकती है। वो हमेशा से थी और आने वाले समय में हमेशा रहेगी भी। आत्मा को किसी तरह का शोक नहीं होता। वो कोई पाप नहीं करता। उसे कोई बिमारी नहीं होती। वो सिर्फ वही जानता है जो सत्य है। और वही करता है जो सत्यकार्य होता है।

यानी की वो सिर्फ अच्छे कार्य करता है। आत्मा को कभी भी भूख प्यास नहीं लगती है। हमे इस आत्मा के बारे में अच्छी तरह जानना चाहिए। जो भी आत्मा के बारे में अच्छी तरह जान लेता है या उसे महसूस कर लेता है। उसे वो सब मिल जाता है जो वो चाहता है। और तो और वो सारे संसार को आसानी से जीत सकता है।

इसी बात के साथ ही ब्रम्हाजी ने सत्संग को ख़त्म किया। और लोगो को अपने अपने घर जाने को कहा।

जब सभी लोग घर पहुंचे, तो दानवो और देवताओं ने अपने-अपने पक्ष के साथ आत्मा के बारे में बात किया। दोनों ही पक्षों को लगा की हमे आत्मा के बारे में और जानना चाहिए। लेकिन हम आत्मा के बारे में कैसे जानेंगे? ये सवाल सभी के मन में था।

तो ऐसा निर्णय हुआ की हमे आत्मा के बारे में ब्रम्हाजी ने बताया है। यानी की वो आत्मा के बारे में जानते होंगे। इसलिए हमे उनके पास ही चलना चाहिए। वही हमे आत्मा के बारे में अच्छे से ज्ञान दे सकते हैं।

जब ये निर्णय हो गया। तो दानवों ने विरोचन को और देवताओं ने इंद्र को अपना नेता बनाकर ब्रम्हाजी के पास आत्मा के बारे में जानने के लिये भेजा। दानव और देवता आपसी दुश्मनी भुला कर एक साथ होकर ब्रम्हाजी के पास गए और उन्हें लेटकर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद दोनों ही हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

दोनों लोगो को एक साथ देखकर ब्रम्हाजी अचम्भा हो गए। उन्होंने पूछा तुम दोनों तो एक दूसरे के बहुत बड़े दुश्मन हो। फिर आज एक साथ कैसे? ऐसा क्या कारण है की तुम दोनों एक साथ हो गए और मेरे पास आये हो।

तब दोनों एक साथ बोले , “भगवन! हम आपके सत्संग में आये थे और हमने पूरा सत्संग अच्छे से सुना। हमने अपनी सभा में इस विषय में चर्चा भी की। आपने सत्संग में आत्मा के विषय में बताया था। हम उस आत्मा के बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं। कृपा करके आप हमे आत्मा के बारे में और ज्यादा बताएं।”

ब्रम्हाजी ने कहा,”ठीक है। मै आपको आत्मा के बारे में बताऊंगा। लेकिन उसके पहले तुम दोनों 32 साल के लिए तन मन से तपस्या करो। जब तुम दोनों तपस्या करके लौटोगे तो मै आत्मा के बारे में बताऊंगा।”

ब्रम्हाजी की आज्ञा से इंद्र और विरोचन तपस्या करने चले गए।

32 साल की तपस्या जब पूरी हो गयी तो विरोचन और इंद्र वापस ब्रम्हाजी के पास आये और बोले। “भगवान! हमने वही किया जैसा आपने कहा था। अब कृपा करके हमे आत्मा के बारे में बताएं।

ब्रम्हाजी उनसे बड़े खुश हुए और उन्हें आत्मा के बारे में बताना शुरू किया।

ब्रम्हाजी ने कहा ,”आत्मा के बारे में ज्ञान दिव्य आँखों से हो सकता है। जो आत्मा दिव्य आँखों से दिखाई देती है वो सबमे है। वही आत्मा है और वही अजर अमर और कभी न मरने वाली है। वही सत्य है। बाकी सब झूठ है।”

दोनों लोगो ने ब्रम्हा जी की बात सुनी। लेकिन उन्हें कोई भी बात समझ नहीं आई। उन्हें कुछ भी समझ न आने का कारण था की उनके मन अभी भी मैले थे। यानी की पाप से भरे थे।

उन दोनो लोगो को बस इतना ही समझ में आया की आँखों से देखने पर जो प्रतिबिम्ब दिखाई देता है वही आत्मा है।

उन लोगो ने ब्रम्हाजी से पूछा ,”प्रभो! जल में और शीशे में जो प्रतिबिम्ब दिखाई देता है उनमे से आत्मा कौनसी है? क्या दोनों ही आत्मा है? या कोई एक है? कृपा कर इतना हमे बताएं।”

ब्रम्हाजी ने कहा ,”हाँ हाँ वही आत्मा है। दिव्य नेत्रों से जो आत्मा दिखाई देती है वो हर जगह है। उसकी परछाई हर जगह दिखाई देती है।”

ब्रम्हाजी जान गए थे की इन दोनों को लोगो को कुछ भी समझ नहीं आया है। इसलिए उन्होंने एक तरकीब सोची।

वो दोनों कोे एक झील के पास ले गए। उन्होंने कहा इस झील में अपनी आत्मा को देखो। यही आत्मा है।

दोनों ने झील में झाँका। ब्रम्हाजी ने पूछा बताओ तुमको क्या दिखाई दे रहा है? दोनो लोग एक साथ बोले ,”भगवान! हम सिर से लेकर पैर तक अपनी आत्मा को देख रहे हैं।”

ब्रम्हाजी ने कहा ,”ठीक है। अब तुम दोनो एक काम करो। जाओ और अच्छे से तैयार होकर आओ।”

थोड़ी देर बाद वो दोनों अच्छे अच्छे कपडे पहने ब्रम्हाजी के सामने खड़े थे।

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Story №2 Of Moral Stories In Hindi For Students

असली ब्रम्हज्ञान

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

बहुत पुराने ज़माने की बात है। जैसे आज के ज़माने में शिक्षा के लिए बड़े बड़े विश्वविद्यालय हैं। उसी तरह से पुराने ज़माने में गुरुकुल हुआ करते थे। और उस गुरुकुल के प्रधानाचार्य को कुलपति कहा जाता था। ऐसे भारत देश में कई बड़े बड़े गुरुकुल थे। जहाँ दूर दूर से बच्चे पढने आते थे।

एक बार की बात है। पांच गुरुकुलो के कुलपतियों ने मिलन समारोह रखा। इनमे थे उपमन्यु पुत्र प्राचीनशाल, पुलुषपुत्र सत्ययज्ञ, भल्लवपुत्र इन्द्रदुम्र, शर्करापुत्र जन और अश्वतराशिव पुत्र बुडिल। ये पांचो लोग काफी ज्यादा ज्ञानी थे। और साथ ही साथ वेद का अच्छा ज्ञान रखने वाले थे।

उस मिलन में सभी लोगो के बीच में यह बात शुरू हो गयी की आत्मा क्या है? और ब्रम्हा क्या हैं? लोगो में काफी बात हुई। लेकिन इस बात का कोई अंत न हो पाया, न ही कोई इसके जवाब से संतुष्ट हो पाया।

आखिरकार उन्होंने सोचा की हमे किसी ऐसे इंसान के पास चलना होगा जिसे ब्रम्हा के बारे में बहुत अच्छे से ज्ञान प्राप्त हो।

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Story №3 Of Moral Stories In Hindi For Students

देवताओं का गर्व हरण

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

आपने अपने जीवन में देवताओं और राक्षसों का नाम तो सुना ही होगा। हमने हर कहानी में सुना होगा की राक्षस जहाँ भयानक विनाशकारी और दुष्ट होते हैं, वहीँ देवता दयालु सभी पर कृपा करने वाले और लोगो की रक्षा करने वाले होते हैं। तो आज हम देवताओं और राक्षसों से जुडी एक ऐसी ही कहानी पढेंगे।

देवता और राक्षस के पिता एक ही हैं। यानी की दोनों एक दूसरे के भाई हैं। बस दोनों लोगो की माताजी अलग अलग हैं। दोनों लोग पूरे संसार पर अपना राज्य स्थापित करना चाहते हैं।

अपना राज्य स्थापित करने के लिए ये दोनों ही हमेशा आपस में लड़ते रहते हैं। कभी राक्षसों की जीत होती तो कभी देवताओं की। देवताओं की माता का नाम अदिति और राक्षसों की माता का नाम दिति है।

एक बार की बात है। राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया। बहुत ही भयानक युद्ध हुआ।

काफी लोग मारे गए। राक्षस लोग बहुत ज्यादा ताक़त वाले थे इसलिए वो जीत रहे थे और देवता लोगो की हार हो रही थी। स्थिति यहाँ तक आ गयी की देवताओं के जान बचने की भी आशा न रही। राक्षसों ने देवताओं को बहुत मारा और जान से मार देने का भी प्रयास किया।

देवता लोग किसी तरह बच कर जंगल में जाकर छुप गए और अपनी जान बचायी। अंत में जब उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखायी दिया तो उन्होंने ब्रम्हाजी की प्रार्थना करना शुरू कर दिया। जिससे उन्हें ताक़त मिली और वो राक्षसों को हरा सकें।

ब्रम्हाजी को देवताओं के इस हाल को देखकर तरस आ गयी। ब्रम्हाजी ने देवताओं को शक्ति दे दी। शक्ति पाकर देवता लोग बहुत शक्तिशाली हो गए और उन्होंने राक्षसों पर दुबारा धावा बोल दिया, जिसमे देवताओं की जीत हुई।

वो सब अपनी विजय से इतने खुश हुए की वो ख़ुशी धीरे धीरे घमंड का रूप लेने लगी। और इस घमंड के चक्कर में वो ये भूल गए की ये जो ताक़त उन्हें मिली है उसकी वजह ब्रम्हाजी हैं। अगर वो न होते तो हम लोग कुछ भी नहीं कर पाते।

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Story №4 Moral Stories In Hindi For Students

सत्यकाम जाबाल

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

कहते हैं कि शिक्षा सबका अधिकार है। लेकिन जैसे आज के ज़माने में जब कोई विद्यालय में नाम लिखवाने जाता है तो उसका नाम, माता का नाम, पिता का नाम और पता आदि पूछा जाता है। वैसे ही पहले के ज़माने में कुछ बातें पूछी जाती थीं। जिनका उत्तर दिए बिना गुरु शिष्य को ज्ञान नहीं देते थे।

तो आज हम ऐसी ही एक कहानी की बात करेंगे। और सीखेंगे की किसी भी विद्यार्थी के अन्दर विद्या ग्रहण करने के लिए कौन कौन से गुण होने चाहिए और एक विद्यार्थी को कैसा होना चाहिए।

बहुत समय पहले की बात है। एक जबाला नाम की औरत थी। वो औरत बहुत ही अच्छे व्यवहार की थी। उसका एक बेटा था जिसका नाम सत्यकाम था।

वह लड़का भी बहुत होनहार था। जो उसकी माँ उसे सिखाती वो उसे बहुत ही जल्दी से सीख जाता था। जबाला अपने पुत्र सत्यकाम से बहुत प्यार करती थी।

सत्यकाम धीरे धीरे जब बड़ा हो गया। और उसने देखा की उसके सभी मित्र गुरुकुल को पढ़ाई के लिए जा चुके हैं। तो उसके मन में भी इच्छा हुई की वो भी गुरुकुल जाकर पढ़ाई करे।

उसने अपनी माँ से कहा माँ मै भी अपने दोस्तों की तरह गुरुकुल जाकर पढाई करना चाहता हूँ।

माँ ने आज्ञा दे दी।

जब सत्यकाम गुरुकुल जाने के लिए तैयार होने लगा तो उसे याद आया की उसके मित्र बता रहे थे की जब वो पहली बार गुरुकुल गए थे तो उनसे उनका गोत्र पूछा गया था। और तभी जाकर गुरुजी ने शिक्षा देना शुरू किया था।

सत्यकाम को याद आया की उसे तो पता ही नहीं है की उसका गोत्र क्या है।

उसने अपनी माँ से कहा। माँ जब मै गुरुकुल जाऊँगा तो वहां गुरूजी मुझसे मेरा गोत्र पूछेंगे। तो मै उनको क्या जवाब दूंगा? क्योंकि मुझे तो मेरा गोत्र नहीं पता है। मुझे नहीं पता की मै किस गोत्र का हूँ? आपने मुझे इस बारे में मुझे कभी कुछ बताया ही नहीं। इसलिए अब मुझे मेरा गोत्र बताने की कृपा करें।

जबाला इस बात को सुनकर चुप हो गयी। उसके पास इस बात का कोई भी जवाब नहीं था। क्योंकि उसे खुद नहीं पता था की सत्यकाम का गोत्र क्या है। गोत्र के बारे में उसे पता भी कैसे होता? उसने कभी अपने पति से गोत्र पूछा ही नहीं। सत्यकाम से कहने के लिए जबाला के पास कोई भी जवाब नहीं था।

थोड़ी देर शांत रहने के बाद जबाला ने सत्यकाम से कहा। जब मै जवान थी तो तुम हमारे घर में जन्म लिए।

हमारे घर में हर दिन नए लोगो का आना लगा रहता था, जिससे तुम्हारे पिताजी और मै उन अतिथि लोगो के कारण बहुत व्यस्त रहते थे।

और तो और उनका काम ऐसा था की वो घर पर बहुत कम ही रहते थे। और जब रहते थे तो अतिथि लोगो के साथ व्यस्त रहते थे। इसलिए उनसे कभी गोत्र पूछने का वक़्त ही नहीं मिला और न ही उन्होंने बताया।

तुम्हारे पैदा होने के कुछ दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी। इसलिए मै कभी उनसे गोत्र नहीं पूछ पायी।

मैंने कई बार सोचा की किसी और से पूछूं। लेकिन तुम्हारे पिता के मृत्यु से मै इतनी दुखी थी की किसी और से भी गोत्र नहीं पूछ पायी। इसलिए पुत्र मुझे नही पता की तुम्हारा गोत्र कौनसा है?

मुझे तो बस इतनी बात पता है की मै जबाला हूँ। और तुम सत्यकाम। इसलिए जब गुरूजी तुमसे पूछे की तुम्हारा गोत्र क्या है। तो उन्हें ये सारी बात बता देना। और कह देना की मेरी माँ का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है। बस मै इतना ही जानता हूँ।

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Story №5 Moral Stories In Hindi For Students

आचार्य सत्यकाम

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

हमने पहले ही ‘सत्यकाम जाबाल’ कहानी में पढ़ लिया है की उसने कैसे गौतम ऋषि से ब्रम्हज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया था। आज हम इस कहानी में पढेंगे जब वही सत्यकाम खुद गुरु बना तो लोगो को कैसे शिक्षा दे रहा है।

सत्यकाम अपने शिष्यों को हमेशा ज्ञान की बातें बताया करते थे। और बताया करते थे की कैसे उन्होंने खुद ज्ञान प्राप्त किया।

उनके शिष्यों में एक शिष्य उपकोसल था। उपकोसल भी अन्य शिष्यों की तरह अग्नियों की सेवा करता था और शिक्षा प्राप्त करता था।

ऐसा करते करते उसे 12 साल बीत चुके थे। जब 12 साल बाद शिक्षा पूरी हो गयी तो सत्यकाम ने सभी शिष्यों का दीक्षांत संस्कार किया और उन्हें घर जाने को कहा। लेकिन उपकोसल का दीक्षांत संस्कार नहीं किया और उसे आश्रम में ही रुकने को कहा।

उपकोसल को इस बात का बहुत बुरा लगा। क्योंकि उसकी भी तो पढाई पूरी हो गयी थी। लेकिन उसे घर जाने की आज्ञा क्यों नहीं मिली?

वो रोते हुए सभी बच्चो को वापस अपने घर जाते देख रहा था। वो अपने गुरु से बहुत गुस्सा हो गया। उसने निर्णय लिए की अब वो अनशन करेगा। अब वो तब तक कुछ नहीं खायेगा, जब तक उसे ब्रम्हज्ञान का ज्ञान नहीं मिल जाता।

गुरुपत्नी (सत्यकाम की पत्नी) उपकोसल के इस दुःख को समझ गयी। उन्होंने सत्यकाम से कहा। प्रभो! उपकोसल ने भी तो ब्रम्हचर्य का पालन वैसे ही किया है, जैसे सभी लोगो ने किया है। फिर आपने इसे क्यों ब्रम्हज्ञान नहीं दिया? क्यों नहीं आप इसे भी ब्रम्हज्ञान देकर दीक्षांत संस्कार कर देते?

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Story №6 Moral Stories In Hindi For Students

गाड़ीवाला ज्ञानी

ये कहानी छान्दोग्योपनिषद से ली गयी है और Moral Stories In Hindi For Students के रूप में संग्रहित की गई है।

महावृष देश के राजा जानश्रुति थे। वो बहुत ही अच्छे राजा थे।

वो अपनी प्रजा का बहुत अच्छे से ख्याल रखते थे। वो अपने देश में आये हुए अतिथि लोगो का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने प्रजा के लिए वो सब किया था जो प्रजा के लिए ज़रूरी हो।

उन्होंने जगह जगह धर्मशालायें, चिकित्सालय, शिक्षाकेन्द्र आदि बनवाये। जो की प्रजा के लिए बहुत ज़रूरी थे। वो एक अच्छे राजा होने के साथ साथ बहुत ज्ञानी भी थे।

वो इतने अच्छे और ज्ञानी थे की देवता तक उनके तेज़ से डरते थे। की कहीं उनके तेज़ से वो जल न जाए। इसलिए वो राजा जानश्रुति के पास से नहीं गुजरते थे। राजा वैसे तो बहुत ज्ञानी थे फिर भी उन्हें ब्रम्हज्ञान नहीं प्राप्त था।

एक दिन की बात है। राजा शाम के समय अपने छत पर टहल रहे थे। और अपनी प्रजा के बारे में सोच रहे थे।

तभी उन्होंने देखा की दो हंस अपने घर को वापस जा रहे थे। वो दोनो आपस में बात कर रहे थे। एक हंस ने कहा की देखना थोडा बचा कर उड़ना कहीं ऐसा न हो की हम राजाजी के तेज़ से जल जाएँ। राजा का तेज़ बहुत ज्यादा है।

दूसरे हंस ने कहा अरे! राजा का क्या तेज़ है? इससे ज्यादा तेज़ तो गाडी वाले रैक्व का है। तुमने उसका तेज़ देखा है क्या? ये बात करते करते दोनो हंस अपने घर की तरफ उड़ चले।

वो दोनों हंस तो अपने घर को चले गए। लेकिन राजा के मन में वो बात घूमती रही। वो इसी बारे में सोचने लगे की हंस ने उसका अपमान किया है।

राजा पूरी रात रैक्व के बारे में सोचते रहे। वो सोचते रहे की उसका तेज़ कितना होगा आखिर? वो कितना ज्ञानी होगा? यही सब सोचते सोचते सुबह हो गयी और राजा को पूरी रात नीद नहीं आई।

राजा ने सुबह होते ही सैनिको को रैक्व की खोज करने के लिए भेज दिया। और कहा की रैक्व से कहना की राजा ने मिलने के लिए बुलाया है।

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